सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :

2025 अक्टूबर माह में दलित पर हुए अत्याचारों पर 
बहन मायावती, संघ और मोदी का असली रूप और जिम्मेदारी :

### 2025 अक्टूबर में भारत में दलितों पर हुई प्रमुख घटनाएं: एक क्रमबद्ध विवरण
2025 के अक्टूबर महीने (1 से 13 अक्टूबर तक) में भारत के विभिन्न हिस्सों में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई दर्दनाक घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं जातिगत हिंसा, भेदभाव, लिंचिंग, आत्महत्या और संस्थागत उत्पीड़न को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दलितों के खिलाफ अपराधों में 46% की वृद्धि हुई है, जो इस महीने की घटनाओं को व्यापक संदर्भ देती है। नीचे तिथि अनुसार प्रमुख घटनाओं का क्रम दिया गया है, जो समाचार स्रोतों और सोशल मीडिया (X) पर वायरल वीडियो/पोस्ट्स पर आधारित हैं। ये घटनाएं मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और सुप्रीम कोर्ट स्तर पर हुईं।
#### प्रमुख घटनाओं का तिथि-क्रम
| तिथि       | स्थान/घटना विवरण                                                                 | प्रभावित व्यक्ति/समुदाय | कार्रवाई/परिणाम |
|------------|----------------------------------------------------------------------------------|--------------------------|------------------|
| **1-2 अक्टूबर** | **रायबरेली, उत्तर प्रदेश**: चोरी के संदेह पर एक दलित युवक हरिओम वाल्मीकि (उम्र 20-25 वर्ष) को भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। वीडियो में वह दया की भीख मांगता दिखा और राहुल गांधी का नाम लिया, लेकिन हमलावरों ने कहा "यहां सब बाबा वाले हैं"। हमलावरों ने लाठियों और मुक्कों से हमला किया। | हरिओम वाल्मीकि (दलित) | 5 गिरफ्तार (वैभव सिंह, विपिन मौर्य, सुरेश मौर्य, सहदेव पासी, विजय कुमार)। FIR दर्ज, लेकिन विरोध प्रदर्शन के बाद ही कार्रवाई। |
| **2 अक्टूबर** | **हिमाचल प्रदेश (अनाम गांव)**: एक 12 वर्षीय दलित बालक को राजपूत परिवार के घर में घुसने पर पीटा गया। परिवार ने "शुद्धिकरण" के लिए बकरी की मांग की, जिसके बाद बालक ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। यह जातिगत अपमान का स्पष्ट उदाहरण है। | 12 वर्षीय दलित बालक | पुलिस जांच जारी; स्थानीय स्तर पर आक्रोश, लेकिन कोई गिरफ्तारी की खबर नहीं। |
| **5-6 अक्टूबर** | **सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली**: एक वकील ने दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंका और नारा लगाया "सनातन का अपमान नहीं सहेेंगे"। यह RSS विचारधारा से प्रेरित जातिगत हमला था, जो न्यायपालिका पर भी सवाल उठाता है। | CJI बी.आर. गवई (दलित) | वकील गिरफ्तार; सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी निंदा की, लेकिन व्यापक जांच की मांग। |
| **7 अक्टूबर** | **चंडीगढ़, हरियाणा**: 2001 बैच के IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार (SC समुदाय) ने जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और प्रमोशन में आरक्षण न मिलने के कारण आत्महत्या की। 9-पेज के सुसाइड नोट में DGP शत्रुजीत सिंह कपूर समेत 12-16 वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप। पत्नी अमनीत पी. कुमार (IAS) जापान दौरे पर थीं। | वाई. पूरन कुमार (दलित IPS) | FIR दर्ज (IPC 108, SC/ST एक्ट); SIT गठित, रोहतक SP हटाया। NCSC ने नोटिस जारी। |
| **9-10 अक्टूबर** | **राजस्थान (सवाई माधोपुर)**: बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला; साथ ही NCRB डेटा पर बहस। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने PM मोदी पर आरोप लगाया कि दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं (46% वृद्धि)। | कमला देवी रैगर (दलित महिला) | राजनीतिक बयानबाजी; कोई विशिष्ट कार्रवाई की खबर नहीं। |
| **10-13 अक्टूबर** | **उत्तर प्रदेश (मैनपुरी, प्रयागराज, अमरोहा)**: 14 वर्षीय दलित लड़की पर गैंग रेप (वीडियो वायरल); प्रयागराज में दलित हिरा लाल की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत; अमरोहा में दलित युवक पर तलवार से हमला (शराब पीने का विरोध)। भिम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने निंदा की। | दलित लड़की, हिरा लाल, युवक | FIR दर्ज; हाईकोर्ट में PIL; विरोध प्रदर्शन। |
#### समग्र विश्लेषण और प्रभाव
- **ट्रेंड**: ये घटनाएं मुख्य रूप से BJP शासित राज्यों (UP, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल) में हुईं, जहां NCRB के अनुसार दलितों पर अपराध सबसे अधिक हैं (UP: 15,130 केस 2023 में)। X पर #DalitVirodhiRSS और #DalitLivesMatter ट्रेंड कर रहे हैं, जहां 40+ हमलों का उल्लेख है। कांग्रेस ने RSS-BJP पर जातिवादी एजेंडे का आरोप लगाया।
- **राजनीतिक प्रतिक्रिया**: मायावती ने UP BJP को सराहा, लेकिन विपक्ष (कांग्रेस, SP) ने निंदा की। तमिलनाडु गवर्नर आर.एन. रवि ने राज्य में दलित अत्याचारों पर चिंता जताई (5 अक्टूबर)।
- **कानूनी पक्ष**: अधिकांश मामलों में SC/ST (Prevention of Atrocities) Act लागू, लेकिन सजा दर मात्र 32%। विशेष अदालतों की कमी और पुलिस पूर्वाग्रह समस्या बढ़ा रहे हैं।
- **सामाजिक प्रभाव**: ये घटनाएं दलित जागरूकता बढ़ा रही हैं, लेकिन भय का माहौल है। CJP रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में जुलाई से अब तक 50+ घटनाएं दर्ज।
ये घटनाएं संवैधानिक समानता पर सवाल उठाती हैं। अधिक जानकारी के लिए NCRB वेबसाइट या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें। स्रोत: समाचार (India Today, The Hindu, CJP) और X पोस्ट्स।
वाई पूरन कुमार आईपीएस** (Y. Puran Kumar IPS) का सोसाइटी नॉट क्या है?
आपके प्रश्न में "सोसाईट नॉट" संभवतः suicide note (आत्महत्या नोट) का टाइपो या उच्चारण भेद है। वाई पूरन कुमार (Y. Puran Kumar), 2001 बैच के हरियाणा कैडर IPS अधिकारी (IG/ADGP रैंक), ने 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित सरकारी आवास के बेसमेंट में अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। उम्र: 52 वर्ष। घटना के समय उनकी पत्नी अमनीत पी. कुमार (IAS, 2001 बैच) जापान में आधिकारिक दौरे पर थीं।
पुलिस ने घटनास्थल से 9 पेज का suicide note बरामद किया, जो मुख्य रूप से हैंडरिटन और टाइप्ड था। यह नोट अंग्रेजी में लिखा गया था, और इसमें उन्होंने अपने हस्ताक्षर (हरी स्याही से) और मृत्यु तिथि (7/10/2025) दर्ज की। नोट की तीन कॉपियां थीं: एक घटनास्थल पर, एक पत्नी को भेजी गई (सुसाइड से कुछ घंटे पहले), और एक करीबी IPS मित्रों को। अंतिम पेज वसीयत (will) का था, जिसमें सभी संपत्ति पत्नी अमनीत को सौंपी गई। नोट को "फाइनल नोट" या "हरियाणा के संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को" संबोधित किया गया था।
सुसाइड नोट की प्रमुख सामग्री
प्रमुख आरोप/उल्लेखविवरणनामित अधिकारी (उदाहरण)
जातिगत भेदभाव और अपमानSC अधिकारी होने के कारण प्रमोशन रोका, इंक्रीमेंट न दिए, सार्वजनिक अपमान। रोहतक में फर्जी FIR (6 अक्टूबर 2025) में फंसाने की कोशिश।रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया (जातिवाद, फर्जी FIR का आरोप); पूर्व DGP मनोज यादव (2020 में थाने में पूजा पर विवाद)।
मानसिक उत्पीड़न और नोटिसबार-बार अनावश्यक नोटिस, सरकारी आवास/वाहन छीनना, गलत हलफनामा। नवंबर 2023 में आधिकारिक वाहन जब्त।DGP शत्रुजीत सिंह कपूर (नोटिस भेजकर परेशान, आवास विवाद); 1991-2005 बैच के 7-8 IPS (अवैध प्रमोशन का आरोप)।
प्रशासनिक हस्तक्षेपकम महत्वपूर्ण पदों पर रखा (जैसे सनौरी जेल प्रमुख, हालिया ट्रांसफर 9 दिन पहले)। भ्रष्टाचार के झूठे केस (रिश्वत लेने का आरोप, जो उनके गनमैन ने कबूल किया)।2 IAS अधिकारी (नाम अस्पष्ट, लेकिन पोस्टिंग में दखल); कुल 12-16 नाम (11 सक्रिय पदों पर)।
सकारात्मक उल्लेखकेवल एक अधिकारी को "सच्चा समर्थन" देने के लिए सराहा।राजेश खुल्लर (रिटायर्ड IAS, CM के मुख्य प्रधान सचिव; दो मुलाकातों में मदद)।
व्यक्तिगत दर्द"अब कोई ऑप्शन नहीं बचा... पिछले 5 साल से उत्पीड़न। परिवार की सुरक्षा चिंतित। ईश्वर से प्रार्थना: मेरे प्रति शत्रुता समाप्त हो।"-

  • वसीयत का हिस्सा: अंतिम पेज में सभी संपत्ति (घर, वाहन, बैंक बैलेंस, निवेश) पत्नी अमनीत को हस्तांतरित। बेटियों (दो) का उल्लेख नहीं, जिससे कानूनी विवाद की आशंका।
  • अन्य: नोट में पत्राचार के रिकॉर्ड (सरकारी ईमेल/लेटर्स) का जिक्र। उन्होंने कहा कि वे "सिस्टेमेटिक ह्यूमिलिएशन" झेल रहे थे, और SC/ST आयोग तक शिकायत की थी।
जांच और प्रतिक्रिया
  • FIR: चंडीगढ़ पुलिस ने IPC धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), SC/ST एक्ट धारा 3(1)(r) व 3(5) के तहत केस दर्ज। SIT (6 सदस्यीय) गठित, CFSL टीम ने फोरेंसिक जांच की। पत्नी ने DGP कपूर और SP बिजरनिया के खिलाफ FIR की मांग की।
  • परिवार: अमनीत ने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखा, "षड्यंत्र" बताया। बेटी अमेरिका से लौटी। रसोइए ने बताया: सुसाइड से पहले पूरन ने 15 बार पत्नी को कॉल किया (उठाया नहीं), और "डिस्टर्ब मत करना" कहा।
  • सरकारी कदम: रोहतक SP बदला गया। NCSC ने नोटिस जारी। पोस्टमॉर्टम 9 अक्टूबर को वीडियोग्राफी के साथ हुआ।
  • विवाद: नोट ने हरियाणा पुलिस में जातिवाद/भ्रष्टाचार उजागर किया। X पर वायरल वीडियो (रिश्वत केस) से बहस। BJP सरकार ने "व्यक्तिगत कारण" बताया, लेकिन विपक्ष ने सिस्टम की नाकामी पर सवाल उठाए।
x
नोट के पहले 8 पेजों में उन्होंने अगस्त 2020 से अक्टूबर 2025 तक के उत्पीड़न का सिलसिलेवार विवरण दिया। मुख्य थीम: जातिगत भेदभाव (SC/ST एक्ट के तहत), मानसिक प्रताड़ना, प्रमोशन में देरी, गलत ACR (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट), अनियमित पोस्टिंग, और भ्रष्टाचार में फंसाने की साजिश। उन्होंने 12-16 वरिष्ठ IAS/IPS अधिकारियों के नाम लिए (जिनमें 8 IPS, 2 IAS, और कुछ रिटायर्ड शामिल), जिन्हें जिम्मेदार ठहराया। कुछ अधिकारियों को मदद के लिए सराहा भी।
नोट की पूरी कॉपी सार्वजनिक नहीं है (पुलिस जांच के कारण), लेकिन ऊपर सार सार्वजनिक स्रोतों से लिया गया। यह घटना नौकरशाही में SC अधिकारियों के संघर्ष को रेखांकित करती है। अधिक जानकारी के लिए चंडीगढ़ पुलिस या आधिकारिक स्रोत देखें।
"सोसाईट नॉट" शायद **suicide note** (आत्महत्या नोट) का टाइपो या उच्चारण भेद हो सकता है, क्योंकि इस घटना में 9-पेज का suicide note प्रमुखता से चर्चा में है। नीचे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। जानकारी समाचार स्रोतों पर आधारित है।
#### पृष्ठभूमि
- **नाम और पद**: वाई पूरन कुमार (Y. Puran Kumar), 2001 बैच के IPS अधिकारी, हरियाणा कैडर। वे ADGP (अतिरिक्त निदेशक महानिदेशक) रैंक के थे। हाल ही में उन्हें सनौरी जेल (जहां गुरमीत राम रहीम बंद हैं) का प्रमुख बनाया गया था।
- **परिवार**: पत्नी - अमनीत पी. कुमार (Amneet P. Kumar), 2001 बैच IAS अधिकारी, हरियाणा कैडर। वे वर्तमान में हरियाणा सरकार में सिविल एविएशन, महिला एवं बाल विकास विभाग की कमिश्नर व सेक्रेटरी हैं। दंपति की दो बेटियां हैं।
- **घटना**: 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित सरकारी आवास के बेसमेंट में उन्होंने खुद को गोली मार ली। उम्र: 52 वर्ष। मृत्यु के समय पत्नी जापान में सीएम नायब सिंह सैनी के साथ आधिकारिक दौरे पर थीं।
#### सुसाइड नोट (Suicide Note) का विवरण
- **लंबाई और सामग्री**: 9-पेज का handwritten note, जो चंडीगढ़ पुलिस को साइट से मिला (एक पेज उनकी जेब से)। इसमें उन्होंने **12-16 वरिष्ठ IAS और IPS अधिकारियों** को नाम लेकर जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने कथित रूप से उन्हें मानसिक उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव (SC/ST एक्ट के तहत), अनियमित प्रमोशन, गलत ACR (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट), और प्रशासनिक हस्तक्षेप किया।
  - **मुख्य आरोप**:
    - **DGP शत्रुजीत सिंह कपूर**: बार-बार अनावश्यक नोटिस जारी कर उत्पीड़न, सरकारी आवास आवंटन में भेदभाव, गलत हलफनामा देकर घर आवंटन रोका, और नवंबर 2023 में आधिकारिक वाहन छीन लिया।
    - **रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया**: जातिगत भेदभाव, सार्वजनिक अपमान, और हालिया फर्जी FIR (6 अक्टूबर 2025) में फंसाने की साजिश।
    - अन्य: 7-8 IPS और 2 IAS अधिकारी, जिनमें 1991, 1996, 1997, 2005 बैच के अधिकारियों के अवैध प्रमोशन का आरोप। SC अधिकारियों के प्रमोशन में देरी और इंक्रीमेंट न देने का दावा।
  - **सकारात्मक उल्लेख**: केवल एक अधिकारी, राजेश खुल्लर (मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव, रिटायर्ड IAS), को उन्होंने "सच्चा समर्थन" देने के लिए सराहा। कहा कि खुल्लर ने दो बार मुलाकात में नोट्स डिक्टेट कर मदद की।
- **अन्य विवरण**: नोट में उन्होंने अपनी जिंदगी के संघर्ष, विभाग में जातिवाद, और "सिस्टेमेटिक ह्यूमिलिएशन" का जिक्र किया। यह नोट कुछ करीबी IPS मित्रों और पत्नी को भेजा गया था।
#### विल (Will) का विवरण
- नोट का एक पेज **विल (will)** के रूप में था, जिसमें उन्होंने **सभी संपत्ति (assets)** को पत्नी अमनीत पी. कुमार को हस्तांतरित कर दिया।
- **संपत्ति (Assets) के बारे में**: सार्वजनिक रूप से कोई सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। IPS अधिकारियों की संपत्ति में आमतौर पर सरकारी आवास, वाहन, बैंक बैलेंस, और कुछ व्यक्तिगत निवेश (जैसे म्यूचुअल फंड, प्रॉपर्टी) शामिल होते हैं। लेकिन कुल मूल्य या नेट वर्थ (net worth) का कोई आधिकारिक खुलासा नहीं हुआ है।
  - **विरासत का विवाद**: समाचारों में सवाल उठा है कि संपत्ति का असली हकदार पत्नी हैं या बेटियां? विल में स्पष्ट रूप से पत्नी को ही सब कुछ सौंपा गया है, लेकिन परिवारिक कानून (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम) के तहत बेटियां भी दावा कर सकती हैं। पत्नी ने FIR की मांग की है, लेकिन संपत्ति विवाद अभी उभर रहा है।
  - **अमनीत पी. कुमार की संपत्ति**: IAS अधिकारियों के लिए वार्षिक संपत्ति घोषणा अनिवार्य है, लेकिन सार्वजनिक डोमेन में कोई विशिष्ट आंकड़े नहीं मिले। अनुमानित रूप से, सीनियर IAS की नेट वर्थ ₹1-5 करोड़ तक हो सकती है (सैलरी, पर्क्स, निवेश पर आधारित), लेकिन पुष्टि नहीं।
#### जांच और प्रतिक्रिया
- **FIR**: चंडीगढ़ पुलिस ने IPC की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r) और 3(5) के तहत FIR दर्ज की। SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित, जिसमें 6 सदस्य हैं। NCSC (नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स) ने भी नोटिस जारी किया।
- **परिवार की मांग**: पत्नी अमनीत ने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर DGP और SP के खिलाफ FIR और गिरफ्तारी की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि यह "षड्यंत्र" था।
- **सरकारी कदम**: रोहतक SP बदला गया। CM ने जांच के निर्देश दिए।
यह घटना हरियाणा पुलिस विभाग में जातिवाद और उत्पीड़न के गंभीर मुद्दों को उजागर कर रही है। यदि आप suicide note की कॉपी या अधिक डिटेल चाहें, तो आधिकारिक स्रोत (जैसे चंडीगढ़ पुलिस) से संपर्क करें। स्रोत: इंडिया टुडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, एशियनेट न्यूज।
 मायावती जी के भाषण में अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं का उल्लेख :
नहीं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने **9 अक्टूबर 2025** को लखनऊ के कांशी राम स्मारक स्थल पर आयोजित **कांशी राम के 19वें परिनिर्वाण दिवस** की महारैली में 

अक्टूबर 2025 (1 से 9 अक्टूबर तक) में हुए विशिष्ट दलित अत्याचारों या हमलों 
(जैसे रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की लिंचिंग, 
हिमाचल प्रदेश में दलित बालक की आत्महत्या, 
सुप्रीम कोर्ट में CJI बी.आर. गवई पर हमला, या 
वाई. पूरन कुमार IPS की आत्महत्या) 
का कोई सीधा या स्पष्ट उल्लेख नहीं किया। 


रैली का फोकस मुख्य रूप से **कांशी राम की विरासत, BSP की संगठनात्मक मजबूती, 2027 यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी, और अन्य दलों पर जातिवादी होने के सामान्य आरोपों** पर रहा। मायावती जी ने दलितों के व्यापक शोषण और आरक्षण के मुद्दों को छुआ, लेकिन हाल की घटनाओं को नाम लेकर या विस्तार से नहीं उठाया। नीचे भाषण के प्रमुख बिंदुओं का सारांश दिया गया है, जो समाचार स्रोतों (आज तक, जागरण, इंडिया डेली, न्यूज18, एनडीटीवी आदि) पर आधारित है।
भाषण के प्रमुख बिंदु (दलित अत्याचारों से जुड़े संदर्भ)
मायावती जी ने लगभग 3 घंटे के भाषण में दलितों के संरक्षण पर जोर दिया, लेकिन अक्टूबर की ताजा घटनाओं का जिक्र न करने से विपक्ष (जैसे कांग्रेस और सपा) ने बाद में सवाल उठाए। मुख्य संदर्भ:
| बिंदु | विवरण | दलित अत्याचार से संबंध |
|-------|--------|-------------------------|
| **सपा पर दलित विरोधी होने का आरोप** | सपा ने कासगंज जिले का नाम "कांशी राम नगर" से बदल दिया; सत्ता में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) को भूल जाती है; बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया। | सामान्य जातिवादी रवैया का उल्लेख, लेकिन कोई हालिया घटना नहीं। |
| **कांग्रेस पर हमला** | इमर्जेंसी के दौरान संविधान का अपमान; दलितों-पिछड़ों का शोषण; कांशी राम के निधन पर राष्ट्रीय शोक न घोषित करना। | ऐतिहासिक शोषण का जिक्र, वर्तमान अत्याचारों का नहीं। |
| **आरक्षण और कानूनों पर** | आरक्षण पूरा नहीं मिला; BSP सरकार बनने पर दलित-पिछड़ों के खिलाफ कानून बदलेंगे; बाबा साहेब के संविधान की रक्षा करेंगे। | दलितों के व्यापक अधिकारों पर फोकस, लेकिन अक्टूबर की घटनाओं (जैसे IPS पूरन कुमार का मामला) का कोई लिंक नहीं। |
| **योगी सरकार की तारीफ** | स्मारक की मरम्मत कराई; दलित प्रतीकों का सम्मान; कानून-व्यवस्था अच्छी। | अत्याचारों पर चुप्पी, जो BJP की आलोचना से बचने की रणनीति मानी जा रही। |
| **चंद्रशेखर आजाद पर अप्रत्यक्ष हमला** | "स्वार्थी और बिकाऊ लोगों" को वोट न दें; BSP वोट बैंक तोड़ने की साजिश। | दलित नेताओं के बीच विभाजन का संकेत, लेकिन हमलों का जिक्र नहीं। |
| **2027 चुनाव का ऐलान** | अकेले लड़ेंगे; पांचवीं बार BSP सरकार बनाएंगे; कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने की अपील। | दलित एकता पर जोर, लेकिन हालिया हिंसा का कोई संदर्भ नहीं। |
#### विश्लेषण और प्रतिक्रिया
- **क्यों नहीं उल्लेख?**: रैली का उद्देश्य **शक्ति प्रदर्शन और सकारात्मक संदेश** देना था, न कि नकारात्मक घटनाओं पर फोकस। मायावती जी ने कांशी राम के "जाति तोड़ो, सत्ता जोड़ो" नारे को दोहराया और BSP को दलित उत्थान का एकमात्र माध्यम बताया। X (ट्विटर) पर कुछ यूजर्स ने इसे "चुप्पी" बताकर आलोचना की, खासकर पूरन कुमार की आत्महत्या (7 अक्टूबर) पर।
- **सामान्य दलित मुद्दे**: भाषण में दलितों के शोषण का व्यापक उल्लेख था, जैसे "जातिवादी दल संविधान बदलने की कोशिश कर रहे" और "दलितों को सत्ता की मास्टर चाबी चाहिए"। लेकिन विशिष्ट घटनाओं (जैसे रायबरेली लिंचिंग या CJI पर हमला) का नामोनिशान नहीं।


- **भीड़ और प्रभाव**: BSP दावा: 4-5 लाख लोग; यह 9 साल बाद लखनऊ में बड़ा आयोजन था। आकाश आनंद (मायावती के भतीजे) ने भी आरक्षण पर बोला, लेकिन अत्याचारों पर नहीं।
यदि मायावती जी बाद में (रैली के बाद) इन घटनाओं पर कोई बयान दें, तो अपडेट हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए BSP आधिकारिक सोशल मीडिया या समाचार स्रोत देखें।

2025 अक्टूबर माह में दलितों पर हुई घटनाओं पर RSS और मोदी का बयान एवं कार्रवाई

2025 के अक्टूबर माह (1 से 13 अक्टूबर तक) में भारत में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई घटनाएं सामने आईं, जैसे रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की लिंचिंग (1-2 अक्टूबर), हिमाचल प्रदेश में 12 वर्षीय दलित बालक की आत्महत्या (2 अक्टूबर), सुप्रीम कोर्ट में दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का हमला (5-6 अक्टूबर), हरियाणा में दलित IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या (7 अक्टूबर), राजस्थान में बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला (9-10 अक्टूबर), और उत्तर प्रदेश में अन्य घटनाएं (मैनपुरी में दलित लड़की पर गैंग रेप, प्रयागराज में हिरासत मौत, अमरोहा में तलवार हमला; 10-13 अक्टूबर)। इन घटनाओं पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई व्यापक या सामूहिक बयान नहीं आया। केवल एक घटना (CJI पर हमला) पर मोदी का व्यक्तिगत बयान मिला, जबकि RSS की ओर से कोई सीधा बयान या कार्रवाई नहीं दिखी। विपक्ष (जैसे कांग्रेस) ने इन घटनाओं को "RSS-BJP की सामंती मानसिकता" से जोड़ा, लेकिन मोदी या RSS ने इसका प्रत्यक्ष जवाब नहीं दिया। नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है, जो उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान और कार्रवाई
मोदी ने अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं पर सामान्य रूप से कोई बयान नहीं दिया। केवल एक विशिष्ट घटना पर उनका X (ट्विटर) पोस्ट मिला:
- **बयान**: 6 अक्टूबर 2025 को मोदी ने X पर पोस्ट किया: "सुप्रीम कोर्ट में आज CJI जस्टिस बी.आर. गवई जी पर हुए हमले से हर भारतीय क्रोधित है। हमारे समाज में ऐसे घिनौने कृत्यों की कोई जगह नहीं है। यह पूरी तरह निंदनीय है। मैं ऐसे हालात में जस्टिस गवई द्वारा दिखाए गए धैर्य की सराहना करता हूं। यह न्याय के मूल्यों और संविधान की भावना को मजबूत करने के उनके समर्पण को दर्शाता है।" (यह पोस्ट सीधे CJI पर हमले से संबंधित था, जो दलित समुदाय से हैं।)
- **कार्रवाई**: कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं दिखी। हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हमलावर वकील को गिरफ्तार किया, लेकिन मोदी सरकार की ओर से कोई जांच आयोग, नीतिगत बदलाव या राष्ट्रीय स्तर की अपील नहीं की गई। विपक्ष ने इसे "संघ की विचारधारा से प्रेरित" बताया, लेकिन मोदी ने इस पर चुप्पी साधी।
- **अन्य घटनाओं पर**: रायबरेली लिंचिंग, IPS पूरन कुमार की आत्महत्या, या अन्य हमलों पर मोदी का कोई बयान नहीं मिला। पुरानी घटनाओं (जैसे 2016) में उन्होंने "दलितों पर अत्याचार से सिर शर्म से झुक जाता है" कहा था, लेकिन 2025 में ऐसा कुछ नहीं। विपक्षी नेता जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि मोदी के समय दलित अपराध 46% बढ़े हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का बयान और कार्रवाई
RSS ने अक्टूबर 2025 की दलित अत्याचार घटनाओं पर कोई सीधा बयान या कार्रवाई नहीं की। उनके X हैंडल (@RSSorg) पर इस अवधि में कोई दलित-संबंधित पोस्ट नहीं मिला।
- **बयान**: कोई स्पष्ट बयान नहीं। RSS का एकमात्र पोस्ट (2 अक्टूबर 2025) पहलगाम आतंकवादी हमले (अप्रैल 2025) पर था, जो दलितों से असंबंधित है। विपक्ष ने RSS को "दलित विरोधी" बताया, जैसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हरियाणा IPS आत्महत्या और रायबरेली लिंचिंग पर "RSS-BJP की सामंती मानसिकता" का आरोप लगाया। पंजाब कांग्रेस ने भी BJP-RSS को दलित अत्याचारों के लिए जिम्मेदार ठहराया।
- **कार्रवाई**: कोई कार्रवाई नहीं दिखी। RSS की सामान्य नीति "सामाजिक समरसता" (सामाजिक सद्भाव) की है, लेकिन 2025 में इन घटनाओं पर कोई विशेष बैठक, अभियान या जांच की खबर नहीं। CJP रिपोर्ट में 2025 के आधे साल में दलित-अदिवासी हिंसा पर RSS-BJP की "खोखली रेटोरिक" की आलोचना की गई है।


#### समग्र विश्लेषण
- **चुप्पी का कारण?**: मोदी और RSS ने इन घटनाओं को "व्यक्तिगत" या "स्थानीय" मानकर टाला हो सकता है, जबकि विपक्ष ने इन्हें "संघ की जातिवादी विचारधारा" से जोड़ा। NCRB डेटा के अनुसार, दलित अपराधों में वृद्धि हुई है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई राष्ट्रीय स्तर की पहल नहीं।
- **विपक्ष की प्रतिक्रिया**: कांग्रेस, तेलंगाना MP मल्लू रवि, और अन्य ने BJP-RSS को दोषी ठहराया। X पर #DalitVirodhiRSS ट्रेंड कर रहा है।
- **सुझाव**: अधिक जानकारी के लिए NCRB रिपोर्ट या आधिकारिक स्रोत देखें। यदि कोई नया बयान आए, तो अपडेट हो सकता है।

2025 अक्टूबर माह में दलितों पर हुए अत्याचारों पर न्यायपालिका और सरकारों की जिम्मेदारी ?

2025 के अक्टूबर माह (1 से 14 अक्टूबर तक) में भारत के विभिन्न राज्यों में दलित समुदाय पर अत्याचार की कई घटनाएं दर्ज हुईं, जो जातिगत हिंसा, भेदभाव और संस्थागत उत्पीड़न को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दलितों पर अपराधों में 46% की वृद्धि हुई है, और यह प्रवृत्ति 2025 में भी जारी है। इन घटनाओं पर देश की न्यायपालिका और केंद्र/राज्य सरकारों की जिम्मेदारी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 17 (अस्पृश्यता उन्मूलन) और SC/ST (Prevention of Atrocities) Act, 1989 के तहत है। नीचे घटनाओं का क्रम, जिम्मेदारियां और की गई कार्रवाई का विवरण दिया गया है। जानकारी समाचार स्रोतों पर आधारित है।

#### प्रमुख घटनाएं (तिथि-क्रम में)
| तिथि       | स्थान/घटना विवरण                                                                 | प्रभावित व्यक्ति/समुदाय |
|------------|----------------------------------------------------------------------------------|--------------------------|
| **1-2 अक्टूबर** | **रायबरेली, उत्तर प्रदेश**: चोरी के संदेह पर दलित युवक हरिओम वाल्मीकि को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। वीडियो में वह राहुल गांधी का नाम लेकर दया मांगता दिखा, लेकिन हमलावरों ने "यहां सब बाबा वाले हैं" कहा। | हरिओम वाल्मीकि (दलित) |
| **2 अक्टूबर** | **हिमाचल प्रदेश**: 12 वर्षीय दलित बालक को राजपूत परिवार के घर में घुसने पर पीटा गया। परिवार ने "शुद्धिकरण" के लिए बकरी मांगी, जिसके बाद बालक ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली। | 12 वर्षीय दलित बालक |
| **5-6 अक्टूबर** | **सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली**: वकील राकेश किशोर ने दलित CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंका और "सनातन का अपमान नहीं सहेेंगे" का नारा लगाया। | CJI बी.आर. गवई (दलित) |
| **7 अक्टूबर** | **चंडीगढ़, हरियाणा**: दलित IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार ने जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या की। 9-पेज के सुसाइड नोट में 12-16 अधिकारियों पर आरोप। | वाई. पूरन कुमार (दलित IPS) |
| **9-10 अक्टूबर** | **सवाई माधोपुर, राजस्थान**: बुजुर्ग दलित महिला कमला देवी रैगर पर हमला। | कमला देवी रैगर (दलित महिला) |
| **10-13 अक्टूबर** | **उत्तर प्रदेश (मैनपुरी, प्रयागराज, अमरोहा)**: मैनपुरी में 14 वर्षीय दलित लड़की पर गैंग रेप; प्रयागराज में दलित हिरा लाल की पुलिस हिरासत में मौत; अमरोहा में दलित युवक पर तलवार से हमला। | दलित लड़की, हिरा लाल, युवक |

ये घटनाएं मुख्य रूप से BJP शासित राज्यों (UP, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल) में हुईं। CJP की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के पहले छह महीनों में दलितों-अदिवासियों पर 50+ घटनाएं दर्ज हुईं।

#### सरकारों की जिम्मेदारी और कार्रवाई
- **केंद्र सरकार (मोदी सरकार)**: SC/ST एक्ट के तहत अपराधों की रोकथाम, जांच और पीड़ितों को मुआवजा/पुनर्वास प्रदान करना। NCRB डेटा पर निगरानी और राज्यों को दिशानिर्देश देना। हालांकि, विपक्ष (जैसे कांग्रेस) ने सरकार पर "चुप्पी" का आरोप लगाया, दावा किया कि अपराध 46% बढ़े हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने केवल CJI पर हमले पर X पर निंदा की, लेकिन अन्य घटनाओं पर कोई बयान नहीं। कोई राष्ट्रीय जांच या नीति बदलाव नहीं।
- **राज्य सरकारें**: पुलिस FIR दर्ज करे, गिरफ्तारियां करे, और विशेष अदालतों में मुकदमे चलाएं। उदाहरण:
  - **उत्तर प्रदेश (योगी सरकार)**: रायबरेली लिंचिंग में 5 गिरफ्तार (वैभव सिंह, विपिन मौर्य आदि), लेकिन विरोध के बाद। मैनपुरी रेप में FIR, लेकिन देरी की शिकायतें।
  - **हरियाणा**: IPS पूरन कुमार मामले में FIR (IPC 108, SC/ST एक्ट), SIT गठित, रोहतक SP हटाया। कांग्रेस ने न्याय की मांग की।
  - **हिमाचल प्रदेश**: बालक आत्महत्या पर जांच जारी, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं।
  - **राजस्थान**: महिला पर हमले पर राजनीतिक बयानबाजी, लेकिन विशिष्ट कार्रवाई नहीं।
- **समस्या**: NCRB के अनुसार, SC/ST एक्ट में सजा दर मात्र 32% है; 14 राज्यों के 498 जिलों में केवल 194 विशेष अदालतें। पुलिस पूर्वाग्रह और देरी आम। Human Rights Watch ने 2025 रिपोर्ट में राज्य सरकारों पर हमलों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।


#### न्यायपालिका की जिम्मेदारी और कार्रवाई
- **सुप्रीम कोर्ट**: संविधान की रक्षा, SC/ST एक्ट की व्याख्या, और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना। CJI गवई पर हमले में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने वकील को निष्कासित किया, प्रवेश कार्ड रद्द किया। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने "बुलडोजर जस्टिस" को अवैध ठहराया और दिशानिर्देश जारी किए (नवंबर 2024 में, लेकिन 2025 संदर्भ में प्रासंगिक)।
- **हाईकोर्ट**: बॉम्बे हाईकोर्ट ने SC/ST एक्ट पर टिप्पणियां कीं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने दलितों पर हमलों में दोषियों को सजा दी।
- **समस्या**: न्यायपालिका में देरी; विशेष अदालतों की कमी। UN ह्यूमन राइट्स कमिटी ने 2025 में दलितों पर हिंसा पर चिंता जताई।

#### समग्र मूल्यांकन
- **जिम्मेदारी**: सरकारें रोकथाम, जांच और पुनर्वास के लिए जिम्मेदार हैं; न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय और कानून व्याख्या के लिए। लेकिन कम सजा दर, पुलिस पूर्वाग्रह और राजनीतिक चुप्पी से न्याय प्रभावित होता है। विपक्ष ने RSS-BJP पर "जातिवादी एजेंडा" का आरोप लगाया।
- **सुझाव**: विशेष अदालतें बढ़ाएं, पुलिस सुधार, और राष्ट्रीय जांच आयोग गठित करें। दलितों की सुरक्षा संविधान की रक्षा है। अधिक जानकारी के लिए NCRB या आधिकारिक स्रोत देखें।

मंगलवार, 30 सितंबर 2025

इतिहास की संरचना को समझने के लिए प्रमुख कारक

इतिहास की संरचना को समझने के लिए कई प्रमुख कारक हैं जो इसे आकार देते हैं। ये कारक सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय पहलुओं को शामिल करते हैं। निम्नलिखित हैं इतिहास की संरचना के प्रमुख कारक:

1 आर्थिक कारक:

उत्पादन के साधन, व्यापार, और आर्थिक प्रणालियाँ (जैसे, सामंतवाद, पूँजीवाद, समाजवाद)।

संसाधनों की उपलब्धता और वितरण।

तकनीकी प्रगति, जैसे औद्योगिक क्रांति, जिसने सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को बदला।

2 सामाजिक कारक:

वर्ग संरचना, सामाजिक असमानता, और सामाजिक गतिशीलता।

परिवार, धर्म, और सामाजिक रीति-रिवाजों की भूमिका।

शिक्षा और साक्षरता का स्तर, जो सामाजिक जागरूकता और परिवर्तन को प्रभावित करता है।

3 राजनीतिक कारक:

शासन प्रणालियाँ (राजतंत्र, लोकतंत्र, तानाशाही) और सत्ता का वितरण।

युद्ध, क्रांतियाँ, और स्वतंत्रता आंदोलन।

कानून और नीतियाँ जो सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं।

4 सांस्कृतिक कारक:

कला, साहित्य, दर्शन, और धर्म का प्रभाव।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वैश्वीकरण।

परंपराएँ और मूल्य जो समाज के व्यवहार को आकार देते हैं।

5 पर्यावरणीय कारक:

प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और जलवायु परिवर्तन।

प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़, सूखा) जो सामाजिक और आर्थिक ढांचे को प्रभावित करती हैं।

मानव और पर्यावरण के बीच अंतर्क्रिया, जैसे कृषि और शहरीकरण।

6 वैज्ञानिक और तकनीकी कारक:

आविष्कार और नवाचार, जैसे प्रिंटिंग प्रेस, भाप इंजन, या इंटरनेट।

चिकित्सा और विज्ञान में प्रगति, जिसने जीवन प्रत्याशा और जनसंख्या को प्रभावित किया।

7 वैचारिक और दार्शनिक कारक:

विचारधाराएँ जैसे राष्ट्रवाद, साम्यवाद, उदारवाद।

बौद्धिक आंदोलन, जैसे पुनर्जागरण या प्रबोधन, जो सामाजिक सोच को बदलते हैं।

8 भौगोलिक कारक:

भौगोलिक स्थिति, जैसे नदियों, पहाड़ों, या समुद्रों की निकटता, जो व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रभावित करती है।

जलवायु और मिट्टी की उर्वरता, जो कृषि और बस्तियों को प्रभावित करती है।

इन कारकों का परस्पर प्रभाव और संयोजन इतिहास की गतिशीलता को निर्धारित करता है। प्रत्येक कारक समय और स्थान के संदर्भ में भिन्न प्रभाव डालता है, जिससे इतिहास की जटिल संरचना बनती है।


भौगोलिक कारक इतिहास की संरचना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कारक मानव समाजों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास को प्रभावित करते हैं। निम्नलिखित हैं भौगोलिक कारकों के ऐतिहासिक प्रभाव के प्रमुख बिंदु:

1 नदियों और जलस्रोतों का प्रभाव:

प्राचीन सभ्यताएँ, जैसे मेसोपोटामिया (टाइग्रिस-यूफ्रेट्स), मिस्र (नील नदी), हड़प्पा (सिंधु नदी), और चीन (ह्वांगहो) नदियों के किनारे विकसित हुईं क्योंकि ये जलस्रोत कृषि, व्यापार और परिवहन के लिए अनुकूल थे।

उदाहरण: नील नदी की नियमित बाढ़ ने मिस्र में स्थिर कृषि को बढ़ावा दिया, जिससे वहाँ एक समृद्ध सभ्यता का विकास हुआ।

2 जलवायु और मिट्टी की उर्वरता:

उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु ने कृषि-आधारित समाजों को बढ़ावा दिया। उदाहरण के लिए, गंगा के मैदानों की उर्वरता ने प्राचीन भारत में समृद्ध सभ्यताओं और साम्राज्यों को जन्म दिया।

प्रतिकूल जलवायु, जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में, ने खानाबदोश जीवनशैली को प्रोत्साहित किया, जैसे मध्य एशिया के मंगोल।

3 पहाड़ और प्राकृतिक अवरोध:

पहाड़ों और प्राकृतिक अवरोधों ने समाजों को बाहरी आक्रमणों से बचाया और सांस्कृतिक विशिष्टता को बनाए रखा। उदाहरण: हिमालय ने भारतीय उपमहाद्वीप को उत्तरी आक्रमणों से आंशिक रूप से सुरक्षित रखा।

लेकिन ये अवरोध व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी सीमित कर सकते थे।

4 समुद्री तट और व्यापार:

समुद्र तटीय क्षेत्रों ने व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। प्राचीन ग्रीस और फोनीशिया जैसे समुद्री तटों पर बसे समाज नौवहन और व्यापार में अग्रणी रहे।

मध्यकाल में यूरोप के समुद्री देशों (पुर्तगाल, स्पेन) ने समुद्री मार्गों के माध्यम से उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।

5 प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता:

खनिज, लकड़ी, और अन्य संसाधनों की उपलब्धता ने औद्योगिक और आर्थिक विकास को प्रभावित किया। उदाहरण: ब्रिटेन में कोयले और लोहे की प्रचुरता ने औद्योगिक क्रांति को गति दी।

संसाधनों की कमी ने कुछ क्षेत्रों में युद्ध और संघर्ष को जन्म दिया।

6 प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव:

भूकंप, बाढ़, और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाएँ सभ्यताओं के पतन का कारण बनीं। उदाहरण: मिनोअन सभ्यता का पतन संभवतः ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ा था।

सूखा और जलवायु परिवर्तन ने कई प्राचीन सभ्यताओं, जैसे माया सभ्यता, को कमजोर किया।

7 भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्व:

रणनीतिक भौगोलिक स्थिति वाले क्षेत्र, जैसे कांस्टेंटिनोपल, व्यापार और सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहे। यह शहर यूरोप और एशिया के बीच एक सेतु था।

भौगोलिक स्थिति ने साम्राज्यों के विस्तार और युद्धों को प्रभावित किया, जैसे मंगोल साम्राज्य का मध्य एशिया की विशाल घासभूमियों पर विस्तार।

8 सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव:

भौगोलिक कारकों ने भाषा, धर्म, और जीवनशैली को आकार दिया। उदाहरण: तिब्बत की ऊँची पठारी स्थिति ने वहाँ की अनूठी बौद्ध संस्कृति को प्रभावित किया।

अलग-थलग क्षेत्रों, जैसे द्वीपों (जापान), ने विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा।

निष्कर्ष:
भौगोलिक कारक इतिहास को केवल पृष्ठभूमि प्रदान नहीं करते, बल्कि वे मानव समाजों के विकास, उनके संघर्षों, और उपलब्धियों को सक्रिय रूप से आकार देते हैं। ये कारक अन्य कारकों (आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक) के साथ मिलकर इतिहास की जटिल तस्वीर बनाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत की भौगोलिक विविधता (हिमालय, गंगा मैदान, तटीय क्षेत्र) ने इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि को बढ़ाया।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

टीवी डिबेट के कोलाहल में संभावनाओं से भरी दो आवाजें

 
लेंस संपादकीय

टीवी डिबेट के कोलाहल में संभावनाओं से भरी दो आवाजें












Editorial Board, Last Updated: September 12, 2025 9:17 Pm
Editorial Board, Kanchana Yadav and Priyanka Bharti

हाल के बरसों में टीवी चैनलों की राजनीतिक बहसों का स्तर जिस तरह से नीचे गिरा है, उसमें इन दिनों सबआल्टर्न ग्रुप से आने वाली दो युवा स्कॉलर संभावनाओं से भरी आवाजों के रूप में उभर रही हैं, जिन पर गौर किया जाना चाहिए।
ये हैं, राष्ट्रीय जनता दल की युवा प्रवक्ता और जेएनयू की स्कॉलर कंचना यादव और प्रियंका भारती, जिन्होंने बेहद मामूली पृष्ठभूमि से ऊपर उठकर और करिअर के बहुत से सुरक्षित विकल्पों को दरकिनार कर राजनीति के जरिये अपनी बात रखने का फैसला किया है।
दरअसल कंचना और प्रियंका की चर्चा हम यहां इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हाल ही में ऐसी खबरें आईं जिनसे पता चला कि कथित रूप से भाजपा प्रवक्ताओं ने टीवी डिबेट में उनके साथ शामिल होने से परहेज किया है। हालांकि प्रियंका भारती और कंचना यादव दोनों के आरोप हैं कि बकायदा उनके नाम लेकर टीवी चैनलों से कहा गया कि वे उन्हें बहस में न बुलाएं!
हम राजद की राजनीति या उसकी विचारधारा पर यहां बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम यहां कहना चाहते हैं कि किस तरह से भाजपा, जैसा कि उस पर लंबे समय से आरोप लग रहे हैं, टीवी की डिबेट को प्रभावित करती है।
कथित मुख्यधारा के टीवी चैनलों की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते हैं, तो इसकी वजह यही है कि वहां सरकार से असहमत आवाजें, खासतौर से हाशिये के लोगों की आवाजें सिमटती जा रही हैं।
वास्तव में कथित मुख्यधारा के मीडिया में हाशिये के लोगों की आवाजें कम सुनाई देती हैं तो इसकी दो बड़ी वजहें हैं, एक तो यह कि मीडिया के संगठनात्मक ढांचे में आज भी निचले या वंचित तबके की हिस्सेदारी बहुत कम है और आज भी इसका चरित्र कुलीन है, दूसरा यह कि प्रमुख राजनीतिक दलों की दिलचस्पी भी टीवी डिबेट में शोर-शराबे का हिस्सा बनने तक कहीं अधिक सीमित है, बजाए तर्कसंगत तरीके से और विचारधारा के स्तर पर बहस करने के।
यही नहीं, टीवी चैनलों की डिबेट में गाली गलौज से लेकर मारपीट तक के दृश्य आम हो गए हैं और यहां तक कि टीवी एंकर तक सांप्रदायिक और जातीय टिप्पणियों से गुरेज नहीं करते, इन दोनों युवा प्रवक्ताओं ने न केवल कम समय में अपनी प्रतिभा के दम पर अलग जगह बनाई है, बल्कि सावित्री बाई फुले, फातिमा शेख और पेरियार-आंबेडकर की विचारधारा को लेकर तर्कों के साथ बात करती हैं।
वास्तव में सामाजिक न्याय और सोशल इंजीनियरिंग के दम पर सत्ता में पहुंच चुकी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कंचना तथा प्रियंका की अपनी पार्टी राजद तक को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए कि उन्होंने भी मंडल आंदोलन के बाद और मंडल कमीशन की सिफारिशों के लागू होने के बाद बहुजन समाज के सबलीकरण की दिशा में बहुत रचनात्मक ढंग से काम नहीं किया।
इन दलों की सत्ता भी कुछ हाथों तक सिमट गई। दरअसल इन दलों के लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने की भी यह एक वजह है। बेशक राजद नेता तेजस्वी यादव ने कंचना और प्रियंका जैसी प्रतिभाशाली युवाओं को मौका देकर अच्छा काम किया है, लेकिन यह बदलाव सिर्फ उनके प्रवक्ता बनने तक सीमित न रहे।
https://youtu.be/1OTtQ4Mr3Qc?si=Jib1x94sjXCRQYom


मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन : एक विश्लेषण - पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध विहारों का विनाश : एक ऐतिहासिक विश्लेषण

 बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस और पतन: एक विश्लेषण

- डॉ ओम शंकर 
(वरिष्ठ ह्रदय रोग विशेषज्ञ हैं जो BHU में पोस्टेड है)

भारत में बौद्ध मंदिरों और विहारों का विध्वंस अनेक चरणों में कई शताब्दियों तक फैला रहा, जो राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से प्रेरित था।
प्रारंभिक शत्रुता का सबसे पहला उल्लेख पुष्यमित्र शुंग (ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी) के शासनकाल में मिलता है, जहाँ दिव्यावदान ग्रंथ के अनुसार उन्होंने सांची आदि क्षेत्रों में स्तूपों को नष्ट किया और बौद्ध भिक्षुओं का वध कराया। 
हालाँकि कुछ आधुनिक इतिहासकार इन विवरणों की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाते हैं, फिर भी यह बौद्ध धर्म के प्रारंभिक राजनीतिक दमन की ओर संकेत करते हैं।
गुप्त काल (चौथी–छठी सदी ईस्वी) में ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान हुआ। बौद्ध विहारों को राजकीय संरक्षण मिलना बंद हो गया, और कई बौद्ध स्थलों को हिंदू मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया। 
सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत यात्रा के दौरान उल्लेख किया कि कई बौद्ध केंद्र जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे और कई पर हिंदू नियंत्रण स्थापित हो चुका था।
सारनाथ, नालंदा, सांची और अमरावती जैसे स्थलों पर पुरातात्त्विक खुदाई में संगठित विनाश के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं — जैसे टूटे हुए स्तूप, विकृत मूर्तियाँ, आग से जले हुए अवशेष और बौद्ध सामग्री का हिंदू स्थापत्य में पुनः उपयोग।
स्कन्द पुराण जैसे मध्यकालीन हिंदू ग्रंथों में बुद्ध को असुरों को भ्रमित करने के लिए विष्णु का अवतार बताया गया, जिससे ब्रह्मणवादी शक्तियों द्वारा बौद्ध धर्म के धार्मिक अपमान का संकेत मिलता है। 
आधुनिक इतिहासकार जैसे डी.डी. कोसांबी, आर.एस. शर्मा और रोमिला थापर ने तर्क दिया है कि बौद्ध धर्म के पतन का कारण धार्मिक-राजनीतिक शत्रुता, और आर्थिक बदलाव का संयोजन था।
इस प्रकार, 13वीं सदी तक भारत में संगठित बौद्ध धर्म का लगभग पूर्णतः लोप राजनीतिक दमन, धार्मिक उपेक्षा, आर्थिक विस्थापन, और हिंसक विध्वंस के संयुक्त प्रभावों का परिणाम था।
बौद्ध मंदिरों के विध्वंस के कारणों का थीमैटिक (विषयगत) सारांश
A. राजनीतिक कारण
पुष्यमित्र शुंग का दमन (बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान में वर्णित)।
गुप्त शासकों की ब्राह्मणवादी नीति, जिसने बौद्ध संस्थाओं को हाशिए पर डाल दिया।
भूमिदान प्रणाली के माध्यम से ब्राह्मणों को भूमि हस्तांतरित कर बौद्ध विहारों को भूमिहीन कर दिया गया।
B. धार्मिक कारण
ब्राह्मण ग्रंथों जैसे स्कन्द पुराण में बुद्ध को मायावी और असुरों को भ्रमित करने वाला अवतार बताया गया।
बौद्ध तीर्थस्थलों का हिंदू मंदिरों में पुनर्परिभाषित करना (उदाहरण: महाबोधि मंदिर, बोधगया)।
C. आर्थिक कारण
बौद्ध विहारों को दान और भूमि से प्राप्त आर्थिक सहायता का पतन। ब्राह्मणवादी मंदिर-आधारित अर्थव्यवस्था का उदय।
ब्राह्मणिक शक्तियों द्वारा बौद्ध स्थलों/विहारों/मंदिरों के विध्वंस का पुरातात्विक साक्ष्य और कालानुक्रमिक विवरण:
1. सांची (मध्य प्रदेश) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
शुंग वंश के समय (पुष्यमित्र शुंग के काल में) सांची के कई बौद्ध स्तूपों और विहारों के विध्वंस के प्रमाण।
खुदाई में स्तूप-1 के पास अनेक बिखरी और पुनर्निर्मित संरचनाएँ मिलीं, जो दर्शाती हैं कि मूल संरचना को ध्वस्त किया गया था।
कुछ स्तंभों और रेलिंगों पर कटाव के चिह्न (defacement marks) स्पष्ट पाए गए हैं।
स्रोत: "Archaeological Survey of India Reports" और "Alexander Cunningham's Sanchi Report (1854)".
2. भारहुत (मध्य प्रदेश) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
भारहुत स्तूप के भग्नावशेषों से स्पष्ट होता है कि इसे भी शुंग वंश के बाद नष्ट किया गया था।
खुदाई में टूटी हुई रेलिंगें, छिन्न-भिन्न मूर्तियाँ, और स्तूप संरचनाओं के विखंडित टुकड़े मिले।
बाद में कुछ भागों पर ब्राह्मणिक मूर्तिकला के संकेत पाए गए (हिंदू देवताओं के चित्र)।
स्रोत: Cunningham's "Bharhut Stupa Excavation Report" (1870s).
3. विद्याधर (सांची क्षेत्र) — 2वीं सदी ईसा पूर्व
विद्याधर क्षेत्र में छोटे बौद्ध विहारों के भग्नावशेष पाए गए, जो दर्शाते हैं कि जानबूझकर तोड़फोड़ की गई थी।
मूर्तियों के सिर तोड़े गए और चक्र के चिह्न खंडित मिले।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Bhopal Circle Reports.
4. कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) — 1वीं सदी ईस्वी
खुदाई में बौद्ध विहारों के ऊपर ब्राह्मणिक मंदिरों के अवशेष मिले, जो दिखाते हैं कि बौद्ध ढाँचों को नष्ट कर उनके स्थान पर मंदिर बनाए गए।


कई बौद्ध मूर्तियों के चेहरे और चिह्न जानबूझकर मिटाए गए।
स्रोत: G. R. Sharma's "Excavations at Kaushambi" (1950s).
5. अमरावती (आंध्र प्रदेश) — 3वीं–4वीं सदी ईस्वी
अमरावती स्तूप के चारों ओर की रेलिंगों को तोड़कर बाद में हिंदू मंदिर निर्माण में उपयोग किया गया।
खुदाई से बौद्ध धर्म के ह्रास और ब्राह्मणिक प्रतीकों के उद्भव के संकेत मिले।
बौद्ध मूर्तिकला के कई टुकड़े जानबूझकर विखंडित पाए गए।
स्रोत: James Burgess's "Amaravati Stupa Report" (1882).
6. नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) — 4वीं सदी ईस्वी
ब्राह्मणिक पुनरुत्थान के दौरान कई बौद्ध विहारों को छोड़ दिया गया और नष्ट किया गया।
खुदाई में बौद्ध संरचनाओं के पतन और कुछ स्थानों पर हिंदू मंदिरों के अवशेष मिले।
मूर्तियों पर जानबूझकर की गई क्षति के चिह्न (deliberate defacement) मिले हैं।
स्रोत: A.H. Longhurst's "Excavations at Nagarjunakonda" (1930s).
7. उदयगिरि (मध्य प्रदेश) — गुप्त काल (4वीं–5वीं सदी ईस्वी)
उदयगिरि गुफाओं में ब्राह्मणिक शक्ति के प्रसार के बाद, पुराने बौद्ध अवशेषों पर हिंदू मूर्तियों और मंदिर स्थापत्य का अतिक्रमण।
पुरानी बौद्ध गुफाओं को ब्राह्मणिक देवताओं की मूर्तियों से भर दिया गया।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Udayagiri Excavation Notes.
8. अजंता (महाराष्ट्र) — 5वीं–6वीं सदी ईस्वी
प्रारंभिक अजंता गुफाएँ विशुद्ध बौद्ध थीं, लेकिन बाद में ब्राह्मणिक हस्तक्षेप से कई गुफाओं के प्रयोग में परिवर्तन हुआ।
कुछ बौद्ध चित्रों को जानबूझकर विकृत किया गया।
स्रोत: Walter Spink's "Ajanta: History and Development".
9. कनheri (महाराष्ट्र) — 5वीं–7वीं सदी ईस्वी
प्रारंभ में पूर्ण बौद्ध विहार रहा, लेकिन ब्राह्मणिक पुनरुत्थान के साथ कई कक्षों का अपवित्र किया जाना और प्रतीकों का विनाश प्रमाणित हुआ।
कई मूर्तियों के सिर और हथेलियाँ जानबूझकर तोड़ी गईं।
स्रोत: Archaeological Survey of India, Kanheri Excavation Reports.
संदर्भ सूची (पादटिप्पणियों अथवा ग्रंथसूची हेतु)
1. दिव्यावदान (अनुवाद: ए. स्ट्रॉन्ग) — पुष्यमित्र शुंग द्वारा बौद्धों के दमन का विवरण।
2. ह्वेनसांग की यात्रा-वृत्तांत ग्रेट तांग रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन (अनुवाद: सैमुअल बील)।
3. आर.एस. शर्मा, भारत में बौद्ध धर्म का पतन।
4. डी.डी. कोसांबी, भारतीय इतिहास का अध्ययन परिचय।
5. रोमिला थापर, प्राचीन भारत: उद्गम से 1300 ईस्वी तक।
6. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के उत्खनन प्रतिवेदन (सारनाथ, नालंदा, विक्रमशिला, रत्नगिरि)।
7. कनाईलाल हाजरा, दक्षिण-पूर्व एशिया में थेरवाद बौद्ध धर्म का इतिहास।
8. स्कन्द पुराण (अनुवाद: जी.पी. भट्ट, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन)।


पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध विहारों का विनाश : एक ऐतिहासिक विश्लेषण
भारत के इतिहास में मौर्य वंश के पतन और शुंग वंश के उदय का काल एक बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक संक्रमण का प्रतीक है। मौर्य काल में बौद्ध धर्म को व्यापक राज्याश्रय प्राप्त था। अशोक जैसे सम्राट ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को एक वैश्विक आंदोलन का रूप दे दिया था। किंतु पुष्यमित्र शुंग (ई.पू. 185–149) के शासनकाल में बौद्ध धर्म को न केवल राजकीय संरक्षण से वंचित होना पड़ा, बल्कि उसे दमन और विहारों के विनाश का भी सामना करना पड़ा।
पुष्यमित्र शुंग: राजनीतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
पुष्यमित्र, जो स्वयं एक ब्राह्मण था, ने बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर सत्ता प्राप्त की। उसने वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए कई यज्ञों का आयोजन किया, जिसमें विशेष रूप से अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख मिलता है। इसका तात्पर्य था कि शासक वैदिक ब्राह्मणवादी धार्मिक आदर्शों को पुनर्स्थापित करना चाहता था। बौद्ध धर्म, जो यज्ञ और ब्राह्मण प्रभुत्व का विरोधी था, स्वाभाविक रूप से पुष्यमित्र की नीति और सोच के विरुद्ध था।
बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र का चित्रण
दिव्यावदान, एक प्रमुख बौद्ध ग्रंथ, पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का शत्रु बताता है।
इसके अनुसार, पुष्यमित्र ने बौद्ध भिक्षुओं के वध के आदेश दिए और बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया।
उसने घोषणा की थी कि जो कोई भी एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाएगा, उसे इनाम मिलेगा।
विशेष रूप से कौशाम्बी, विदिशा और मथुरा जैसे स्थानों पर बौद्ध विहारों को नुकसान पहुँचाए जाने का उल्लेख मिलता है।
उद्धरण (दिव्यावदान से):

 "पुष्यमित्र ने बौद्ध भिक्षुओं का वध कराया और उनके विहारों को नष्ट कर दिया।"
इतिहासकारों की दृष्टि:
राधाकमल मुखर्जी, के.ए. नीलकंठ शास्त्री जैसे इतिहासकार मानते हैं कि पुष्यमित्र ने निश्चित रूप से बौद्धों के प्रति असहिष्णुता दिखाई थी, किंतु व्यापक हत्याकांड या विनाश की घटनाएँ अतिरंजित भी हो सकती हैं।
रोमिला थापर जैसे आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के कारण बौद्ध धर्म के राजकीय संरक्षण में कमी आई, परंतु सामाजिक स्तर पर बौद्ध धर्म जीवित रहा।
संभवतः पुष्यमित्र ने बौद्ध संस्थाओं के विरुद्ध कुछ दमनात्मक नीतियाँ अपनाई, लेकिन स्थानीय स्तर पर बौद्ध धर्म जारी रहा।
अर्थात पुष्यमित्र का उदय एक ब्राह्मणवादी प्रतिक्रिया का संकेतक था, जो मौर्य-कालीन धम्म आधारित राज्य नीति के विपरीत था।
बौद्ध धर्म का विरोध मुख्यतः इस कारण भी था कि यह ब्राह्मणीय विशेषाधिकारों, यज्ञ परंपरा और वर्ण व्यवस्था को चुनौती देता था।
पुष्यमित्र की धार्मिक नीतियाँ एक प्रकार के सांस्कृतिक पुनरुद्धार का प्रयास थीं, जिसमें बौद्ध धर्म को पीछे धकेलना आवश्यक समझा गया।
इसके साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे क्षय भी शुरू हुआ, जो बाद के गुप्तकाल में और अधिक स्पष्ट हो गया।
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल बौद्ध धर्म के इतिहास में एक मोड़ था।
जहाँ एक ओर सत्ता संरचना में ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान हुआ, वहीं बौद्ध धर्म को राज्याश्रय से वंचित कर दिया गया।
यद्यपि संपूर्ण विनाश के प्रमाण नहीं मिलते, परंतु बौद्ध विहारों और भिक्षु समुदायों पर स्थानीय स्तर पर आक्रमण और उत्पीड़न की घटनाएँ पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की सच्चाई का हिस्सा रहीं।
बौद्ध धर्म के राजनीतिक संरक्षण के समाप्त होने ने अंततः उसे भारत की मुख्यधारा से धीरे-धीरे हटा दिया, और यही परिघटना भारतीय इतिहास के धार्मिक स्वरूप को भी गहरे रूप से प्रभावित करती है।

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

अस्पृश्यता उसका स्रोत ; बाबा साहेब डा. अम्बेडकर संपूर्ण वाड्मय

अस्पृश्यता-उसका स्रोत 

ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पृश्यों की दयनीय स्थिति से दुखी हो यह चिल्लाकर अपना जी हल्का करते फिरते हैं कि हमें अस्पृश्यों के लिए कुछ करना चाहिए।' लेकिन इस समस्या को जो लोग हल करना चाहते हैं, उनमें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो यह कहता हो कि 'हमें स्पृश्य हिंदुओं को बदलने के लिए भी कुछ करना चाहिए। यह धारणा बनी हुई है कि अगर किसी का सुधार होना है तो वह अस्पृश्यों का ही होना है। अगर कुछ किया जाना है तो वह अस्पृश्यों के प्रति किया जाना है और अगर अस्पृश्यों को सुधार दिया जाए, तब अस्पृश्यता की भावना मिट जाएगी। सवर्णों के बारे में कुछ भी नहीं किया जाना है। उनकी भावनाएं, आचार-विचार और आदर्श उच्च हैं। वे पूर्ण हैं, उनमें कहीं भी कोई खोट नहीं है। क्या यह धारणा उचित है? यह धारणा उचित हो या अनुचित, लेकिन हिंदू इसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहते? उन्हें इस धारणा का सबसे बड़ा लाभयह है कि वे इस बात से आश्वस्त हैं कि वे अस्पृश्यों की समस्या के लिए बिल्कुल भी उत्तरदायी नहीं हैं।

यह मनोवृत्ति कितनी स्वभाव अनुरूप है, इसे यहूदियों के प्रति ईसाइयों की मनोवृत्ति का उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है। हिंदुओं की तरह ईसाई भी यह नहीं मानते कि यहूदियों की समस्या असल में ईसाइयों की समस्या है। इस विषय पर लुइस गोल्डिंग की टिप्पणी इस स्थिति को और अधिक स्पष्ट करती है। यहूदियों की समस्या असलियत में किस तरह ईसाइयों की समस्या है, इसे बताते हुए वह कहते हैं :

"जिस अर्थ में मैं यहूदियों की समस्या को असलियत में ईसाई समस्या समझता हूं, उसको स्पष्ट करने के लिए बहुत ही सीधी-सी मिसाल देता हूं। मेरे ध्यान में मिश्रित जाति का एक आयरिश शिकारी कुत्ता आ रहा है। इसे मैं बहुत दिनों से देखता आया हूं। यह मेरे दोस्त जॉन स्मिथ का कुत्ता है, नाम है पैडी। वह इसे बेहद प्यार करते हैं। पैडी को स्कॉच शिकारी कुत्ते नापसंद हैं। इस जाति का कोई कुत्ता उसके आस-पास बीस गज दूर से भी नहीं निकल सकता और कोई दिख भी जाता है तो वह भूक-भूककर आसमान सिर पर उठा लेता है। उसकी यह बात जॉन स्मिथ को बेहद बुरी लगती है और वह उसे चुप करने का हर संभव प्रयत्न भी करते हैं. क्योंकि पैडी जिन कत्तों से नफरत करता है. वे बेचारे चुपचाप रहते हैं और कभी भी पहले नहीं भुंकते। मेरा दोस्त. हालांकि पैडी को बहुत प्यार करता है, तो भी वह यह सोचता है. और जैसा कि मैं भी सोचता हूं, कि पैडी की यह आदत बहुत कुछ उसके किसी जाति-विशेष होने पर उसके स्वभाव के कारण है। हमसे किसी ने यह नहीं कहा कि यहां जो समस्या है, वह स्कॉच शिकारी कुत्ते की समस्या है और जब पैडी अपने पास के किसी कुत्ते पर झपटता है जो बेचारा टट्टी-पेशाब वगैरह के लिए जमीन सूंघ-सांघ रहा होता है, तब उस कुत्ते को क्या इसलिए मारना-पीटना चाहिए कि वह वहां अपने अस्तित्व के कारण पैडी को हमला करने के लिए उकसा देता है।

हम देखते हैं कि यहूदी समस्या और अस्पृश्यों की समस्या एक जैसी है। स्कॉच शिकारी कुत्ते के लिए जैसा पैडी है, यहूदियों के लिए वैसा कोई ईसाई है और वैसा ही अस्पृश्यों के लिए कोई हिंदू है। किंतु एक बात में यहूदियों की समस्या और ईसाई समस्या एक-दूसरे की विरोधी है। यहूदी स और ईसाई अपनी प्रजाति के एक-दूसरे के शत्रु होने के कारण एक-दूसरे से अलग कर दिए गए हैं। यहूदी प्रजाति ईसाई प्रजाति के विरुद्ध है। हिंदू और अस्पृश्य इस प्रकार की शत्रुता के कारण एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। उनकी एक ही प्रजाति है और उनके एक जैसे रीति-रिवाज हैं।

दूसरी बात यह है कि यहूदी, ईसाइयों से अलग-अलग रहना चाहते हैं। इन दो तथ्यों में से पहले तथ्य अर्थात यहूदियों और ईसाइयों में वैर-भाव का आधार यहूदियों की अपनी प्रजाति के प्रति कट्टर भावना है और दूसरा तथ्य ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित लगता है। प्राचीन काल में ईसाइयों ने यहूदियों को अपने साथ मिलाने के कई प्रयत्न किए, लेकिन यहदियों ने इसका सदा प्रतिरोध किया। इस संबंध में दो घटनाएं उल्लेखनीय हैं पहली घटना नेपोलियन के शासन काल की है। जब फ्रांस की राष्ट्रीय असेम्बली इस बात के लिए सहमत हो गई कि यहूदियों के लिए 'मानव के अधिकार घोषित किए जाएं, तब अलसाके के व्यापारी संघ और प्रतिक्रियावादी पुरोहितों ने यहूदी प्रश्न को फिर उठाया। इस पर नेपोलियन ने इस प्रश्न को यहूदियों को उनके द्वारा ही विचार करने के लिए सौंपने का निर्णय किया। उसने फ्रांस, जर्मनी और इटली के प्रमुख यहूदी नेताओं का एक सम्मेलन बुलाया ताकि इस बात पर विचार किया जा सके कि क्या यहूदी धर्म के सिद्धांत, नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्तों के अनुरूप हैं अथवा नहीं। नेपोलियन यहूदियों को बहुसंख्यकों के साथ मिला देना चाहता था। इस सम्मेलन में एक सौ ग्यारह प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह सम्मेलन 25 जुलाई 1806 को पेरिस के टाउन हाल में हुआ, जिसमें बारह प्रश्न विचारार्थ रखे गए थे। ये प्रश्न मुख्य रूप से यहूदियों में देश-भक्ति की भावना, यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच विवाह होने की संभावना और इसकी कानूनी मान्यता से संबंधित थे। सम्मेलन में जो घोषणा की गई, उससे नेपोलियन इतना प्रसन्न हुआ कि उसने येरूस्लम की प्राचीन परिषद् के आधार पर यहूदियों की एक सर्वोच्च न्याय परिषद् (सैनहेड्रिन) का आयोजन किया। उसने इसे विधान सभा का कानूनी दर्जा देना चाहा। इसमें फ्रांस, जर्मनी, हालैंड और इटली के इकहत्तर प्रतिनिधि शामिल हुए। इसकी अध्यक्षता स्ट्रासबर्ग के रब्बी सिनजेइम ने की। इसकी बैठक 9 फरवरी 1807 को हुई और इसमें एक घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया, जिसमें इस बात के लिए सभी यहूदियों का आवाह्न किया गया कि वे फ्रांस को अपने पूर्वजों का निवास स्थान मान लें, इस देश के सभी निवासियों को अपना भाई समझें और यहां की भाषा बोलें। इसमें यहूदियों और ईसाइयों के बीच विवाह-संबंध उदार भाव से ग्रहण करने का भी अनुरोध किया गया, लेकिन इस घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया कि ये विवाह-संबंध यहूदियों की धार्मिक महासभा द्वारा नहीं स्वीकृत किए जा सके। यहां यह उल्लेखनीय है कि यहूदियों ने अपने और गैर-यहूदियों के साथ विवाह-संबंध होने की स्वीकृति नहीं दी। उन्होंने इन संबंधों के विरुद्ध कुछ भी कार्रवाई न करने के बारे में सहमति मात्र दी थी।

दूसरी घटना तब की है, जब बटाविया गणराज्य की स्थापना 1795 में हुई थी। इसमें यहूदी संप्रदाय के अति-उत्साही सदस्यों ने इस बात पर दबाव डाला कि उन ढेर सारे प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए, जिनसे यहूदी पीड़ित हैं। किंतु प्रगतिशील यहूदियों ने नागरिकता के पूर्ण अधिकार की जो मांग की थी, उसका एम्सटर्डम में रहने वाले यहूदियों के नेताओं ने पहले तो विरोध किया जो काफी आश्चर्य की बात थी। उनको आशंका थी कि नागरिक समानता होने से यहूदी धर्म की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी, और उन्होंने घोषणा की कि उनके सहधर्मी अपने नागरिक होने के अधिकार का परित्याग करते हैं, क्योंकि इससे उनके धर्म के निर्देशों के अनुपालन में बाधा पहुंचती है। इससे स्पष्ट है कि वहां के यहूदियों ने उस गणराज्य के सामान्य नागरिक के रूप में रहने की अपेक्षा विदेशी के रूप में रहना अधिक पसंद किया था।

ईसाइयों के स्पष्टीकरण का चाहे जो भी अर्थ समझा जाए, इतना तो स्पष्ट है कि उन्हें कम से कम इस बात का तो एहसास रहा है कि उनका यह प्रमाणित करना एक दायित्व है कि यहूदियों के प्रति उनका व्यवहार गैर-मानवीय नहीं रहा है। परंतु हिंदुओं ने अस्पृश्यों के साथ अपने व्यवहार के औचित्य को प्रमाणित करने की बात तो कभी सोची ही नहीं। हिंदुओं का दायित्व तो बहुत बड़ा है, क्योंकि उनके पास कोई वास्तविक कारण है ही नहीं, जिसके अनुसार वे अस्पृश्यता को उचित ठहरा सकें। वे यह नहीं कह सकते कि कोई व्यक्ति समाज में इसलिए अस्पृश्य है, क्योंकि वह कोढ़ी है या वह घिनौना लगता है। वे यह भी नहीं कह सकते कि उनके और अस्पृश्यों के बीच में कोई धार्मिक वैर है, जिसकी खाई को पाटा नहीं जा सकता। वे यह तर्क भी नहीं दे सकते कि अस्पृश्य स्वयं हिंदुओं में घुलना-मिलना नहीं चाहते।

लेकिन अस्पृश्यों के संबंध में ऐसी बात नहीं है। वे अर्थ में अनादि हैं और शेष से विभक्त हैं। लेकिन यह पृथकता, उनका पृथग्वास उनकी इच्छा का परिणाम नहीं है। उनको इसलिए दंडित नहीं किया जाता कि वे घुलना-मिलना नहीं चाहते। उन्हें इसलिए दंडित किया जाता है कि वे हिंदुओं में घुल-मिल जाना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि हालांकि यहूदियों और अस्पृश्यों की समस्या एक जैसी है क्योंकि यह समस्या दूसरों की पैदा की हुई है, तो भी वह मूलतः भिन्न है। यहूदी की समस्या स्वेच्छा से अलग रहने की है। अस्पृश्यों की समस्या यह है कि उन्हें अनिवार्य रूप से अलग कर दिया गया है। अस्पृश्यता एक मजबूरी है, पसंद नहीं।



सोमवार, 10 मार्च 2025

डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद : 10 ;03 ;2025

  डॉ अनिल जयहिंद का डॉ लाल रत्नाकर से व्हाट्सएप्प संवाद :

10 ;03 ;2025 
(श्री राहुल गांधी जी ने इनको (डॉ अनिल जैहिन्द यादव को) संविधान बचाने की जिम्मेदारी दे रखी है और उनकी समझ कितनी है इस संवाद में समझ में आ जाएगी।)





अज : तेरी समझ की दाद देनी पडेगी। treasurer बन कर लोकतांत्रिक जनता दल को भाजप से जादा चंदा दिला दिया। और उत्तर प्रदेश की 80 सीट जीता दी। वाह।
रत्नाकर ; ठीक समझा।

अज : मुझे अच्छा लगा कि दिन रात तेरे जहन में मैं रहता हूँ।  रोजाना 4 पोस्ट मेरे नाम की डालता है।
रत्नाकर ; भाषा को ठीक रखा जाए और आपसी मेल मोहब्बत बनी रहे अपना सच सुनने से भागना नहीं चाहिए मेरा ख्याल है कि मैंने उत्तर प्रदेश में 80 नहीं तो 37 से 42 तक पहुंचा तो दिया ही है। लोकतांत्रिक जनता दल में जो कुछ भी था किसी तिकड़म से नहीं था। माननीय शरद जी की ऐसी इच्छा थी उन्होंने मेरे अंदर कुछ देखा होगा इसलिए ऐसा किया था. मुझे अफसोस है कि आप अपने आचरण से हमारे जैसे लोगों को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। जबकि शास्त्रों में लिखा है निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छावाए.

अज : निंदक डायरेक्ट बोलता है। सोशल मिडिया पर नहीं।
रत्नाकर ; वैसे हमारे जेहन में बहुत लोग रहते हैं आप अकेले नहीं हो इसलिए मुझे इस बात की फिक्र नहीं होती कि मेरे बारे में कोई क्या कह रहा है।

अज :  मुझे खुशी है कि जो व्यक्ति दिन रात पहले धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव को कोसता था, आज मुझे कोस रहा है। मुलायम को कोसते हुऐ शरद यादव जी के पास मैंने खुद सुना है। मायावती के गुणगान करते हुऐ.
रत्नाकर ;  ऐसा आप जैसा व्यक्ति ही अपने बारे में लिख सकता है मैं तो मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द भी आपको नहीं रखता आप न जाने किस जमाने की तोप हो गए हो। बस डर लगता है कि राहुल गांधी का आंदोलन कहीं आपकी भेंट न चढ़ जाए।

अज : निंदक डायरेक्ट बोलता है। सोशल मिडिया पर नहीं।
रत्नाकर ; रही बात सामने कहने की तो कभी मैं सच कहने से पीछे नहीं जाता इस बात से आप अच्छी तरह वाकिफ हो मैं पीछे से किसी के ना ही हथियार चलाता हूं और ना ही चोरी करता हूं और ना ही झूठ बोलता हूं। यह मेरा स्वभाव और मेरा सच है जिसकी वजह से बहुत सारे लोग मेरा नुकसान भी करते हैं मैं ऐसा देखा हूं। शरद जी की बात बीच में मत लाइए मैंने आपको वहां भी देखा और सुना है।

अज : शरद यादव जी ने मुझे महासचिव बनाया था।
रत्नाकर ; मैंने कहां कहा कि नहीं बनाया था। आपके महासचिव रहते हुए पार्टी के उत्थान और पतन दोनों को मैंने देखा।

अज :बिना सोचे बनाया था? पार्टी के पास फंड नहीं हो पाया क्योंकि कोषाध्यक्ष नकारा था।
रत्नाकर ; कोषाध्यक्ष का काम में बखूबी और ईमानदारी से किया हूं महासचिव का काम होता है पार्टी को समृद्ध बनाना और आपका एक पैसे का भी पार्टी में योगदान मुझे नजर नहीं आया। शब्द की गरिमा बनाए रखिए नाकारा शब्द बहुत अच्छा नहीं होता।

अज : अब राजद का बंटाधार कर दिया। 
रत्नाकर ; मुझे अच्छी तरह याद है अंतिम दिनों में आप लोगों ने क्या किया था। राजद बहुत अच्छी स्थिति में है । उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी और मेरा मानना है कि इंडिया गठबंधन को मजबूत करने के लिए हमारे जैसे लोगों की बहुत जरूरत है।

अज : जहां जहां पैर पड़े रत्नाकर के, वहीं वहीं बंटाधार।
रत्नाकर ;  बिल्कुल अपने दरवाजे को सुरक्षित रखिए। कहीं मेरे पांव वहां पड़ गए तो विचार करिए कहां जगह बनेगी.....

अज :बुदेला को राजद से टिकट न मिलना तुम्हारा फेल्योर है।
रत्नाकर ; मैं आपकी इस बात से पूरा सहमत हूं हमें प्रयास करना चाहिए था जिसको हम लोग नहीं कर पाए।
मुझे पूरा भरोसा है कि आपके प्रयास से इस बार बुलबुल को जरूर पार्लियामेंट में जगह मिलेगी। जिसके लिए आपकी त्याग तपस्या बहुत काम आएगी। 
आमीन।

अज : हम सच्चा प्रयास करते हैं। राजकमल के मामले में थोड़ा देर से शुरू हुए।
रत्नाकर ; विश्राम करिए आगे की रणनीति पर विचार करिए कहां हमारे पीछे पड़ गए हैं हम आपके पीछे नहीं पड़े हैं हम चाहते हैं कि सामाजिक न्याय का भला हो। और सामाजिक न्याय चाहने वाले भी आगे इस ईमानदारी से बढ़ें अगल-बगल न झांके।

अज : Bulbul is doing well in Gujarat as incharge secretary, learning, maturing and growing fast.
रत्नाकर ; ओके।, यह कोई नई बात नहीं है हम इससे वाकिफ हैं।
अज :For your kind information.I take care of Congress, you do your duty in RJD
रत्नाकर ; आपके अंदर हमारे लिए इतना जहर भरा है मुझे मालूम नहीं था।

अज : जहर नहीं अमृत है। आपके जहर को मारेगा
रत्नाकर ;मैं राजद की ओर से आपको कुछ नहीं कह रहा हूं और न हीं कांग्रेस की ओर से आपसे कोई अपेक्षा है। आप तो मेडिकल के विद्यार्थी हो मुझे लगता है कि दोनों की उपयोगिता आपको अच्छी तरह पता होगी। अमृत किस रूप में आप बांट रहे हैं यह तो अभी-अभी हमने देखा है।

अज : 140 करोड बहुजन की जंग लडते हैं।
रत्नाकर ; अभी नई जनगणना के आंकड़े नहीं आए हैं।

अज : हम जहर पीते हैं, और अमृत बांटते हैं, शिव की तरह। 
रत्नाकर ; मोहब्बत खरीदिए।

अज : सच्चे लोग हमें फ्री में मोहब्बत दे देते हैं। हमने आज तक मोहब्बत खरीदी नहीं, सिर्फ अर्जित की है।
रत्नाकर ;  हम तो बिल्कुल देने के मूड में नहीं है।

अज : तुम मोहब्बत की नकली कापी पेंटिंग बेचते हो। लेकिन हम खरीदार नहीं।
रत्नाकर ;  पात्रता होनी चाहिए। पेंटिंग तो पेंटिंग होती है पेंटिंग को समझने के लिए पात्रता होनी चाहिए और पात्रता होगी तो खरीदने का माद्दा भी।

अज : कितनी बिकी आईफेक्स में
रत्नाकर ;  क्या करेंगे जानकर?

अज : खुद मान रहे हो कि तुम्हारी पेंटिंग किसी के पल्ले नहीं पड़ती।
बाजार में एक जन्तु है, जो है तो पीला लेकिन खुद को लाल बताता है। जो है तो कंकर, लेकिन खुद को रत्नाकर बताता है।
रत्नाकर ;बाजार कहां पहुंच गए। कंकड़ पत्थर जोड़कर फलां लिए बनाय । ता पर चढ़कर बाहुबली की तरह चिल्लाय।

अज : सजन रे झूठ मत बोलो
खुदा के पास जाना है न पेंटिंग है, न झोला है न टोपी है वहां पैदल ही जाना है।
रत्नाकर ; लगता है अभी उतरी नहीं है। कल रात के नशे की खुमारी नहीं गई। जालिम तेरा बचन है या गाली है समझ में ना आए। बताते हो 140 करोड़ का मसीहा और अपने एक साथी को माटी में रहे हो मिलाय। अहंकार तो बड़ों का नहीं चला हम लोग तो उसके आगे क्या है।

अज : आपकी कला की यात्रा उस रोज शुरू होगी, जिस रोज कापी छोड़कर ओरिजनल बनाना शुरू करेंगे।
रत्नाकर ; हा हा हा हा हा हा......... वाह कला के भी विशेषज्ञ निकले। डर यही था की ज्यादा चलने में, बोलने में, लिखने में, फोटो खींचाने में कहीं सच न उजागर हो जाए।

अज : खुद को लाल रत्न कहने से कोई कलाकार नहीं बना। स्वयंभु कहते हैं।
रत्नाकर ;मेरा नाम है भाई है। अब आपका नाम का क्या बखान करूं। कहीं उस व्यक्तित्व का अपमान ना हो जाए जिसने यह नारा दिया होगा। 
जयहिंद।।

अज : अमीर के चक्कर काट कर कुछ न प्राप्त होगा।
रत्नाकर ; अमीर और गरीब का संबंध हजारों साल का है कृष्ण को ही देखीए ना सुदामा की कितनी मदद किया।

अज : गरीब की सेवा करें।
रत्नाकर ; आपसे बड़ा तो कोई नजर नहीं आ रहा है।  हो सके तो खुद भी कुछ करें।

अज :अमीर के चक्कर काट कर कुछ न प्राप्त होगा।
रत्नाकर ;  अमीर और गरीब का संबंध हजारों साल का है कृष्ण को ही देखीए ना सुदामा की कितनी मदद किया।

अज : प्रेस क्लब के चक्कर काटने की बजाय गाँव जाऐं। लोगों के पास
रत्नाकर ; आप जीत गए हैं मैं हार गया हूं बाज आईए । आप रणहो - पुतहो पर उतर आए हैं। कहीं कॉल मिलाकर अपनी इतनी सुमधुर सशक्त आवाज में कुछ करना ना शुरू कर दें।
रत्नाकर ; अगली योजना क्या है?  लखनऊ में है कि दिल्ली से ही प्रसारण कर रहे हैं।  आज आप लखनऊ रहने का संदेश अपने फेसबुक पेज पर डालें है।



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